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कविता

सदी की सबलिमिटी

प्रतिभा चौहान


राष्ट्र की कोख में
तुम्हारा वर्तमान शब्द
आने वाले इतिहास का नया कल है
गूँज है सदियों की
प्रकृति का विस्तार है
आक्रोश है धरा के वीरों का
उगो, बह जाओ
हिमालय की नोक से
गूँजो, तीव्र स्वरों की गहराई से
क्योंकि
इस ब्रह्मांड की तलहटी से निकली
तुम्हारे शब्दों की आवाज
सदी की सबसे बड़ी सबलिमिटी है।


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